1977 में एक फिल्म आई थी "चाचा भतीजा" । इसमें नायक थे धर्मेंद्र और रणधीर कपूर । फिल्म कोई खास नहीं चली । आजकल एक नवीनतम फिल्म आई है , उसका नाम भी चाचा भतीजा ही है । वैसे तो यह एक क्षेत्रीय फिल्म है लेकिन हिट पूरे देश में हो रही है ।
बॉलीवुड की फिल्म "चाचा भतीजा" में दोनों नायक एक महिला विलेन का सफाया कर देते हैं । दरअसल उस कहानी में महिला विलेन है सुनीता नाम की एक औरत । यह औरत तेजा नाम के एक व्यक्ति जिसकी पहली बीवी मर चुकी है , से विवाह कर लेती है । तेजा का एक भाई है शंकर जिसकी भूमिका धर्मेंद्र ने की है और तेजा का अपनी पहली पत्नी सीता से एक पुत्र है जिसका नाम है सुन्दर जिसकी भूमिका की है रणधीर कपूर ने । सुनीता षड्यंत्र पूर्वक अपने पति तेजा की संपत्ति हड़पने के लिए तेजा , शंकर और सुन्दर में दरार डालने की कोशिश करती है परन्तु दोनों चाचा भतीजा मिलकर उसका सारा षड्यंत्र विफल कर देते हैं । एक गाना बड़ा प्रसिद्ध हुआ था इस फिल्म का जो कि इस प्रकार था ।
कोई माने या ना माने , सच कह गये हैं लोग पुराने ।
बुरे काम का बुरा नतीजा , क्यों भई चाचा , हां, भतीजा ।।
आजकल भारत राष्ट्र के अंदर स्थित एक महाराष्ट्र प्रांत में फिर से यह फिल्म धड़ल्ले से चल रही है । आश्चर्य जनक बात यह है कि यह फिल्म सुपर डुपर हिट हो रही है । कारण है इसकी कहानी । पुरानी मूवी में चाचा भतीजा मिल जाते हैं और एक महिला का भांडा फोड़ देते हैं । हमारे देश में महिलाओं का इतना सम्मान है कि लोग महिलाओं के विरुद्ध एक शब्द भी सुनना पसंद नहीं करते हैं । और इस फिल्म में एक महिला को विलेन बता कर उसके भांडा फोड़ने की बात भी दिखा दी । तो लोग इसे कैसे सहन करते ? इसीलिए लोगों ने यह फिल्म फ्लॉप करा दी । इसी कारण नहीं चली यह फिल्म ।
आज भी एक "ज्योति मौर्य" के पक्ष में लोग इसीलिए तो खड़े हैं क्योंकि वह महिला है और महिला जो चाहे करे , सब सही है । ज्योति मौर्य के पति आलोक मौर्य ने चाहे अपनी जिन्दगी भर की कमाई अपनी पत्नी ज्योति मौर्य पर लगाकर , मेहनत मजदूरी कर उसे पढाया और उसको पी सी एस की परीक्षा दिलवाई । वह पीसी एस बन गई । पी सी एस बनने के बाद उसे आलोक मौर्य जैसे "फटीचर" पति की क्या जरूरत है ? अब तो आई ए एस और आई पी एस लाइन लगाकर खड़े हैं उसके पास । तो ज्योति मनीष पाण्डे से चोंच लड़ाने लग गई और पति आलोक मौर्य को छोड़ दिया । "ज्योति" "ज्वाला" बन गई । रोता रह गया आलोक मौर्य । वैसे भी आजकल पतियों को तो रोना ही है । अब कारण मत पूछना ? पति हैं तो रोना तो पड़ेगा ही ना ? अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले में कह दिया है कि पत्नी को अधिकार है कि वह विवाहिता होकर भी किसी गैर मर्द के साथ "संबंध" बना सकती है और पति उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकता है , बस, "सहन" कर सकता है । तो अब पतियों की "सहनशक्ति" की परीक्षा की घड़ी आ गई है । या तो सहन कर लो या फिर तलाक ले लो ।
तो पुरानी फिल्म की असफलता से सबक लेकर यह फिल्म बनाई है । इस फिल्म में चाचा भतीजा दोनों ही एक दूसरे को पटखनी देते दिख रहे हैं । चाचा अपने आपको महान "रणनीति कार, चतुर , डिप्लोमैट, होशियार चंद" और न जाने क्या क्या समझता है । चाचा के "कर्मों के कारण चाचा की पहचान "धोखेलाल" के रूप में बन गई । मगर पैसे में बहुत ताकत होती है । ये पैसा सबसे पहले "पत्रकारों और मीडिया" को दिया जाता है एक नेता की "जन छवि" गढ़ने के लिए । बस, चाचा ने खूब पैसा खिलाया मीडिया को । पैसा मिलते ही चाचा धोखेलाल को मीडिया ने राजनीति का चाणक्य कहना प्रारंभ कर दिया और इस प्रकार एक "धोखेलाल" को खैराती मीडिया ने "चाणक्य बना दिया । मीडिया किसी को कुछ भी बना सकता है, उसे सर्वाधिकार है । इस प्रकार धोखेलाल "चाचा" को मीडिया ने राजनीति का "चाणक्य" बना दिया ।
चाचा तो धोखा देने में "विशेषज्ञ" है और "भतीजे" ने अपने चाचा को बार बार धोखा देते हुए देखा है तो भतीजे ने चाचा से धोखा देने का गुर पूरी विशेषज्ञता के साथ सीखे हैं । जब एक दिन भतीजे ने ही चाचा को धोखा दे दिया और उसकी कानों कान तक खबर किसी को नहीं हुई तब चाचा की सूरत देखने लायक थी । चाचा खुद को बहुत शातिर समझता था मगर भतीजे ने चाचा का सब शातिरपना उतार दिया । चाचा 84 साल का हो गया मगर सत्ता का मोह अभी भी छूट नहीं रहा है । अब तो भतीजा भी 65 साल का हो चुका है । बेचारा अपने "राजतिलक" का और कब तक इंतजार करता ? आखिर एक दिन वह अपने ही चाचा की पार्टी को उड़ाकर ले गया ।
जैसे ही पता चला कि भतीजा अपने चाचा की "पार्टी" को उड़ाकर ले गया है बस, तभी से खैराती मीडिया विधवा विलाप कर रहा है । जो लोग दूसरों के घरों में सदैव ताकाझांकी करते रहते हैं , एक दिन कोई दूसरा होशियार आदमी ऐसे "होशियार चंदों" के घरों में सेंधमारी करके इन "होशियार चंदों" का सारा माल हड़प कर जाते हैं । इसके बाद ये होशियार चद रोता ही रह जाता है । अब चाचा कह रहा है कि भतीजे ने उसके साथ दगा कर दिया । भतीजा कह रहा है कि चाचा अपनी पार्टी को अपनी पुत्री के दुपट्टे से बांध रहा था इसलिए वह मजबूर होकर पार्टी ले उड़ा था । इस स्थिति में वह और कर भी क्या सकता था ? अब चाचा अपना खिसियाना सा मुंह लेकर "विक्टिम" कार्ड खेलने की कोशिश कर रहा है । लेकिन ये पब्लिक है ना, ये सब जानती है जी । अब खैराती मीडिया का नहीं सोशल मीडिया का जमाना है जी ।
जनता को यह फिल्म खूब पसंद आ रही है और लोग इस फिल्म से खूब आनंदित हो रहे हैं ।
श्री हरि
Shashank मणि Yadava 'सनम'
25-Jul-2023 04:42 AM
Wahhhh.,,, बहुत ही उम्दा और मजेदार हास्य व्यंग्य
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